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नदी के द्वीप / अज्ञेय

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|रचनाकार=अज्ञेय
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हम नदी के द्वीप हैं।
कहीं फिर भी खड़ा होगा नए व्यक्तित्व का आकार।
मात:, उसे फिर संस्कार तुम देना।
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