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फागुनी दोहे / अनूप अशेष

8 bytes added, 16:22, 4 नवम्बर 2009
आने लगी मुंडेर पर, चिठ्ठी जैसी शाम।
पता डाकिया पूछता, लेकर अपना नाम।।
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