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सँवारा होता / अभिज्ञात
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17:34, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अभिज्ञात
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{{KKCatGhazal}}
<poem>कभी बिखरा के सँवारा तो करो
मुझपे एहसान गवारा तो करो
हमको दिल से नही कोई मतलब
तुम ज़रा हँस के उजाला तो करो
</poem>
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