|रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव
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{{KKCatKavita}}<poem>पुण्य फलीभूत हुआ कल्प है नया<br>सोने की जीभ मिली<br>स्वाद तो गया<br><br>
छाया के आदी हैं गमलों के पौधे<br>जीवन के मंत्र हुए सुलह और सौदे<br>अपना जड़ भूल गई <br> द्वार की जया<br><br>
हवा और पानी का अनुकूलन इतना<br>बंद खिड़कियाँ बाहर की सोचें कितना<br>अपनी सुविधा से है <br> आँख में दया<br><br>
मंज़िल दर मंज़िल है एक ज़हर धीमा<br>सीढ़ियाँ बताती है घुटनों की सीमा<br>मुझसे तो ऊँची है <br> डाल पर बया<br/poem>