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घबरा कर / कुंवर नारायण

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|रचनाकार=कुंवर नारायण
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वह किसी उम्मीद से मेरी ओर मुड़ा था
 
लेकिन घबरा कर वह नहीं मैं उस पर भूँक पड़ा था ।
 
 
ज़्यादातर कुत्ते
 
पागल नहीं होते
 
न ज़्यादातर जानवर
 
हमलावर
 
ज़्यादातर आदमी
 
डाकू नहीं होते
 
न ज़्यादातर जेबों में चाकू
 
 
ख़तरनाक तो दो चार ही होते लाखों में
 
लेकिन उनका आतंक चौकता रहता हमारी आँखों में ।
 
 
मैंने जिसे पागल समझ कर
 
दुतकार दिया था
 
वह मेरे बच्चे को ढूँढ रहा था
 
जिसने उसे प्यार दिया था।
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