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सकल बन फूल रही सरसों / अमीर खुसरो
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06:29, 5 नवम्बर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=अमीर खुसरो
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>सकल बन (सघन बन) फूल रही सरसों,
सकल बन (सघन बन) फूल रही....
अम्बवा फूटे, टेसू फूले, कोयल बोले डार डार,
और बीत गए बरसों ।
सकल बन फूल रही सरसों ।
</poem>
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