गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
जीभ की गाथा / अरुण कमल
13 bytes added
,
07:17, 5 नवम्बर 2009
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
दाँतों ने जीभ से कहा-- ढीठ, सम्भल कर रह
हम बत्तीस हैं और तू अकेली
फिर भी मैं रहूंगी
जब तक यह चोला है।
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits