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सूर्य-ग्रहण : 2 / अरुण कमल
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|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
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धीरे-धीरे हो गया सर्वग्रास
पर एक काला गोल पिण्ड
रहा दीप्त
विराजता पूरे आकाश में--
ग्रहण के बावजूद सूर्य ही रहा सूर्य
ग्रहण के बावजूद सूर्य ही होता है सूर्य !
</poem>
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