|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
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बहुत सुन्दर लगेगा सूर्य
धीरे-धीरे गिरेगा प्रकाश
और अन्त में रह जाएगी एक काली पुतली
रोशनी के वर्क़ में लिपटी,
कभी बस हीरे के नग-सा दमकता सूर्य
कभी मोतियों की माला-सा झिलमिल
कभी गरी की एक फाँक-भर उज्ज्वल
और एक क्षण को धरती पर बिछेगी
प्रकाश और अँधेरे से बुनी चटाई
बहुत सुन्दर, बहुत भव्य है ब्रह्मांड का यह दृश्य
जो लूट सके सो लूट ।
ऎसी सुन्दरता कौन काम की
जिसके देखे दीदा फूटे ?
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