Changes

निस्पृह / अरुण कमल

25 bytes added, 07:35, 5 नवम्बर 2009
|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
मैंने कल के बारे में कुछ नहीं सोचा
 
कल के लिए कुछ भी बचाया नहीं
 
मैंने तो सब कुछ लुटा दिया आज ही खुले हाथ
 
इन वृक्षों की तरह जिन्होंने झाड़ दिए सारे पत्ते
 
कभी न सोचा क्या होगा कल
 
और खड़े हैं बिल्कुल नंगे ।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits