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आत्मकथा / अरुण कमल

21 bytes added, 07:58, 5 नवम्बर 2009
|संग्रह=पुतली में संसार / अरुण कमल
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न लेखक गृह का एकान्त
 
न अनुदान वृत्ति का अभ्यास
 
जितनी देर में सिंझेगा भात
 
बस उतना ही है अवकाश ।
 
चलते चलते डालनी चप्पल
 
गिरते हँफ़ते उठाना राग,
 
ख़ड़े मंच पर पात्र तैय्यार
 
शेष अभी लिखना सम्वाद ।
 
कैसे सिल पर घिसूँ जायफ़ल
 
तेल ठोप भर, ज़्यादा गाद ।
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