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घर / अरुण कमल

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|संग्रह=पुतली में संसार / अरुण कमल
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जो घर से निकल गया उसका इंतज़ार मत करना
 
कहाँ जाएगा कहाँ ले जाएगी हवा उसे
 
कहाँ किस खंदक किस पुल के पाये में
 
मिलेगी लाश उसकी
 
तुम पहचान भी सकोगे या नहीं
 
या एक ही निशान होगा जांघ का वो तिल तुम्हारे वास्ते
 
ऊपर उठा जो गुब्बारा
 
किसने देखा क्या हुआ उसका
 
जब तक मिलेंगे पाँव के निशान
 
वह किसी तट पर डूब चुका होगा
 
बन्द कर लो द्वार
 
मत पुकारो
 
लौट जाओ अपने घर
 
वह हवा की तरह दुष्प्राप्य है
 
यह दुनिया माँ का गर्भ नहीं
 
जो एक बार घर से निकला
 
उसका फिर कोई घर नहीं ।
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