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रात के दो बजे / अरुण कमल

14 bytes added, 09:10, 5 नवम्बर 2009
|संग्रह = सबूत / अरुण कमल
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रात के दो बजे हैं
 
खाँसती जा रही है बच्ची
 
खाँसते-खाँसते उठ-उठ कर बैठती-छिटकती
 
कौंधता है रह-रह कर छाती में दर्द
 
कभी माँ कभी बाप की तरफ़ उमड़ती-घुमड़ती
 
गर्म तवे पर जल की बूंद-सी
 
तड़प-तड़प कर नाच रही है बच्ची
 
दो तट थामे बाढ़
 
रात के दो बजे
 
रात के दो बजे हैं
 
सुख से सोया हैं संसार
 
और कोई रहड़-कटे खेत की खूँटियों पर
 
:::::भागता जा रहा है--
 
चारों तरफ़ से घेरते आ रहे हत्यारे
 
::::हाथ में छुरा लिए
 
चमक रहा चांद गिर रही ओस
 
रात के दो बजे रात के
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