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अतृप्ति / महादेवी वर्मा

12 bytes added, 14:43, 5 नवम्बर 2009
यह चिर अतृप्ति हो जीवन
चिर तृष्णा हो मिट जाना!
:::गूँथे विषाद के मोती:::चाँदी की स्मित के डोरे;:::हों मेरे लक्ष्य-क्षितिज की:::आलोक तिमिर दो छोरें।
</poem>
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