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आखिर हम आदमी थे / अरुणा राय

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|रचनाकार=अरुणा राय
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{{KKCatKavita}}<poem>इक्कीसवीं सदी के <br>आरंभ में भी<br>प्यार था<br>वैसा ही <br>आदिम<br>शबरी के जमाने सा<br>तन्मयता <br>वैसी ही थी<br>मद्धिम <br>था स्पर्श<br>गुनगुना...<br><br> आखिर <br>हम आदमी थे<br>
... इक्कीसवीं सदी में भी
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