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कि अपना ख़ुदा होना / अरुणा राय
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17:14, 5 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अरुणा राय
}}
ग़ुलामों की
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<
br
poem
>
ग़ुलामों की
ज़ुबान नही होती
<br>
सपने नही होते
<br>
इश्क तो दूर
<br>
जीने की
<br>
बात नही होती
<br>
मैं कैसे भूल जाऊँ
<br>
अपनी ग़ुलामी
<br>
कि अपना ख़ुदा होना
<br>
कभी भूलता नहीं तू...
</poem>
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