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कैसी आग है यह / अरुणा राय

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|रचनाकार=अरुणा राय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>ओह क्या है यह<br>मेरे पहलू में<br>यह कैसी आग <br> जलती रहती है हर बखत<br>जिसमें मेरा हृदय <br> तपता रहता है<br><br>
वह अग्नि है<br>तो राख क्यों नहीं कर जाती<br>मेरा हृदय <br><br>
ना स्वप्न है <br> ना जागरण है<br>कैसा व्यक्तित्वांतरण है यह<br>कि अपनी ही शक्ल <br> अब बेगानी लग रही है<br>कि अब तो बस <br> वही चेहरा है<br>अग्निशिखा में दिपता सा<br>निर्धूम<br><br>
जाने यह कैसी आग है<br>यह कौन जगता जा रहा है <br> मेरे अंतर में<br>कैसी पुकार है यह<br>
मेरे अंतर को व्यथित करती ...
</poem>
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