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|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
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'''ग़ज़ल४'''
 
 
कोई हो मौसम थम नहीं सकता रक़्से-जुनूँ दीवानों का
ज़ंज़ीरों की झनकारों में शोरे-बहाराँ बाक़ी है
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