|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
चाँद को रुख़्सत कर दो
==============
मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुख़्सत कर दो
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद
दिले-ख़ूँ-गश्ता<ref>ख़ून में लत-पत दिल</ref> का हँसता हुआ ख़ुश-रंग गुलाब
{{KKMeaning}}
</poem>