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02:29, 6 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>उर्वरकों के अंधाधुंध
उपयोग से कृषि के लिए
हानिकर कीट तो नष्ट
ही हो गये
साथ ही दूसरे जीव भी
समाप्त हो गए
वनस्पतियों के सहारे जीने वाले
जीव जंतु भी जीव रहित हो गए
गीध आदि जो वायुमंडल को
स्वच्छ रखा करते थे
नष्ट होते होते नष्ट हो चले
इस दुर्घट योग से
दुनियाँ कैसे बचे?
16.09.2002</poem>