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अपनी पलकों पे लिए जश्ने-चराग़ाँ चलिए(ग़ज़ल) / अली सरदार जाफ़री
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03:13, 6 नवम्बर 2009
दूर तक साथ तिरे, उम्रे-गुरेज़ाँ, चलिए
ज़ौक़े-आराइश-ओ-गुलकारी-ए-अश्क़-ए-ख़ूँ<ref>ख़ून के आँसुओं की सजावट का शौक</ref> से
कोई भी फ़स्ल हो, फ़िरदौस-ब-दामाँ चलिए
द्विजेन्द्र द्विज
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