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03:38, 6 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>गायों को ठिकाने पहुँचा कर
चरवाहा; उनकी देखरेख में लगा
नीम की सुखाई पत्तियों के धुँए से
मसे, मक्खियों और डाँसों से
उन्हें कुछ चैन दिया
सास्ना सहलाते हुए प्यार किया
प्यार की भाषा समझती हैं
गाएँ भी
जो कुछ उन्हें प्यार से खिलाते हैं
खाती हैं।
फिर इन गायों को दुहता है
दुहने वाला और बछडों के लिये भी
छोड़ता है
आदमी और जानवर एक दूसरे के हैं
एक दूसरे के लिये।
17.09.2002</poem>