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04:11, 6 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>छिपकली घरों के अंदर ही
रहती है,
वहाँ उसे रक्षा और आहार भी
मिलता है।
मनबहलाव के लिए भी कभी
घर से बाहर जाते उसे कम देखा गया
बहुत से कीट पतंग उस के आहार में
नहीं आते
घर के भीतर ही उस को काम भर का
मिल जाता है, घर भी थोडा बहुत
साफ रहा करता है।
जब उसे कोई चिंता नहीं होती
तभी वह कट, कट अवाज़ करती है
जैसे दो लकड़ियाँ आपस में टकरा कर
रह गई हों, बहुत मंद स्वर में।
22.09.2002</poem>