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दो शे’र / अली सरदार जाफ़री
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|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
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दो शे’र
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हर मंज़िल इक मंज़िल है नयी और आख़िरी मंज़िल कोई नहीं
इक सैले-रवाने-दर्दे-हयात१ और दर्द का साहिल कोई नहीं
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