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03:29, 7 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=त्रिलोचन
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<poem>तहदिल हमारी खेती-बारी के
लोखर ठीक किया करता था
घर में जो चीज़-वस्तु काम की
न होती थी वही ठीक करता था
अपना काम करते हुए वह
बातें करता था अच्छी अच्छी,
गाहक जैसे होते बातें भी वैसी ही,
कभी कोई अपना काम जल्दी
निबटाने को कहता था तब वह
समझाता था-जल्दी तो सबको है,
थोड़ी देर बैठ लो, काम हुआ जाता है
अभी--
फाल, कुदाल, फरूहा, खुर्पा आदि
सबके सुधारने के लिये
एक दिन उस ने तय कर दिया था,
जब वह लोहसान जगाता था, उस के
पास लोग चले जाते थे। किसी को
कोई भी शिकायत न थी।
बहुत दिनों बाहर रह कर गाँव
आया था। खेती के औजारों को देखा,
सुधरवाए बिना काम नहीं बनेगा।
हलवाहे ने कहा--तहदिल अब नहीं है,
बताया मुझे अब लुहार कौन है, कहाँ है।
26.09.2002 </poem>