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04:27, 8 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>चौगडा पकड में बस आ गया
बच्चों नें हठ किया हम तो
इसे पालेंगे।
बड़ों नें बच्चों की बात मान ली।
चौगड़ा सभी को प्रिय था,
उस की सुरक्षा के विचार से
पिंजरा बनवाया गया।
सब सीधे घर आते/ घेर कर उसी को बैठ जाते थे
काफी देर तक/ अच्छी अच्छी खाने की चीजें
खिलाते थे
सब का वह प्यारा था, चहेता था।
पिंजरे का द्वार संजोग से खुला रह गया,
एक बिल्ले नें घुस कर/ चौगडे को घायल
कर दिया बुरी तरह/ जिसका जितना
जतन उस का उतना पतन।
चौगडा बचाया नहीं जा सका।
4.10.2002</poem>