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ज़िन्दगी मछली है जैसे / अश्वघोष
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11:39, 8 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अश्वघोष
|संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष
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[[Category:गज़ल]]
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ज़िन्दगी मछली है जैसे मुफ़लिसी के जाल में।
कूद जाने को तड़पती है समय के जाल में।
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