|संग्रह=शहर अब भी संभावना है / अशोक वाजपेयी
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{{KKCatKavita}}<poem>तुम्हारी आँखों में नयी आँखों के छोटे-छोटे दृश्य हैं।<br>तुम्हारे कन्धों पर नये कन्धों का <br>हल्का-सा दबाव है-<br>तुम्हारे होठों पर नयी बोली की पहली चुप्पी है <br>और तुम्हारी उँगलियों के पास कुछ नये स्पर्श हैं<br>माँ, मेरी माँ,<br>तुम कितनी बार स्वयं से ही उग आती हो <br>और माँ मेरी जन्मकथा कितनी ताज़ी <br>और अभी-अभी की है !<br>
(1960)
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