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पुश्तैनी तोप / असद ज़ैदी

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|संग्रह=कविता का जीवन / असद ज़ैदी
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आप कभी हमारे यहाँ आकर देखिए
 
हमारा दारिद्रय कितना विभूतिमय है
 
एक मध्ययुगीन तोप है रखी हुई
 
जिसे काम में लाना बड़ा मुश्किल है
 
हमारी इस मिल्कियत का
 
पीतल हो गया है हरा, लोहा पड़ चुका है काला
 
घंटा भर लगता है गोला ठूँसने में
 
आधा पलीता लगाने में
 
इतना ही पोज़ीशन पर लाने में
 
फिर विपक्षियों पर दाग़ने के लिए
 
इससे ख़राब और अविश्वसनीय जनाब
 
हथियार भी कोई नहीं
 
इसे देखते ही आने लगती है
 
हमारे दुश्मनों को हँसी
 
इसे सलामी में दाग़ना भी
 
मुनासिब नहीं है
 
आख़िर मेहमान को दरवाज़े पर
 
कितनी देर तक खड़ा रखा जा सकता है
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