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15:01, 8 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>कुंड कनौरा का देखा--
मल्लाह जाल से
मछली मार रहे थे
ज़िन्दा सीपी उन्हे मिली थी।
उसे दिखाने में मछुवारों को
कोई आपत्ति नहीं थी, वे भी
दिखा रहे थे, बता रहे थे।
जो भी मैंने सीपी, अब तक
देख रखी थी
उस में त्वचा नहीं थी
पंजों के बल उचक उचक कर
जगह बदलते, और जनों की बातें सुनते
मैं भी उत्साहित था।
जब भी गया कनौरा मैं
कुण्ड भी ज़रूर देखने गया
शायद वह सीधी तिरती हुई
दिखाई दे जाय।
14.10.2002</poem>