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मीमांसा / शशि पाधा
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19:19, 8 नवम्बर 2009
रिमझिम बूंदें बरसा करतीं
पपीहारा
पपीहरा
किस बूंद का प्यासा ?
जाने क्यों मैं समझ न पाई
जग में जीने की परिभाषा ।
अनिल जनविजय
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