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02:32, 9 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>गर्मी के ताप से तपा बटोही देखता है घनी
पत्तियों की श्याम छाँह, फूल शाखा प्रशाखा में
बिराजमान, सुरभि भरे, इसी सुरभि के ड़ोरे, पवन
की लहरियों में, घुले मिले बकुल के पास चलने वाले
को थोड़ा विश्राम लेने के लिये खींचते हैं।
बकुल की सुरभि अपनी सीमा को हुलास से पार
कर जाती है, पथिक चारो ओर देखता है, खोज लेता
है; गंधवती है पृथिवी। गंध भी अनेक रूप रंग
की मिलती है। बकुल की सुगंध तो अनोखी है; देखिये,
देखते रहिए।
बकुल के फूलों के हार मालाकार ही बनाते हैं।
फूल कुम्हलाएँ तो सुगंध कुम्हलाती नहीं।
1.11.2002</poem>