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मौन है आकाश / इला कुमार

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|संग्रह=ठहरा हुआ एहसास / इला कुमार
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तुम
 
जो इन मौन सन्नाटों में कहदे
 
आकाश कि नीलिमा में घुले हुए
 
कौन?
 
चमकीली सी इक आग
 
लपट बन कौंधती है, नारंगी गुलमोहरों के तले
 
हवाएं बादलों से काढ़ती हैं एक बूटा
 
तुम्हारी अनन्त फैली अदृश्य बाहों पर
 
वहीँ पर कहीं
 
गहराती है शाम सुनहले रंगों में
 
शायद यहीं कहीं किन्हीं गुफाओं में
 
छिपी बैठी गूंजती होंगी
 
ऋचाएं वेदों कि
 
काश ये आँखें, यह मैं, ये हम
 
सिर्फ दृश्यों में उलझ कर संतुष्टि न पाते
 
कुछ और भी ढूंढ़ पाते
 
जो अदृश्य है, अगोचर
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