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दूर क्षितिज तक / इसाक अश्क

52 bytes removed, 14:44, 9 नवम्बर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=इसाक अश्क
}} {{KKCatKavita}}{{KKCatNavgeet}}<poem> दूर क्षितिज तक<br>टेसू वन में बिना धुएँ की<br>आग लगाए हैं।<br><br>
हवा<br>हवा में पंख तौल-<br>इतराती है,<br>रात<br>रात भर जाने क्या-क्या<br>गाती है,<br><br>
रस की<br>प्रलय-बाढ में जैसे<br>सब डूबे-उतराए हैं।<br><br>
पत्ते<br>नृत्य-कथा का<br>मंचन करते हैं,<br><br>
धूल<br>शशि पर फूल<br>बाँह में भरते हैं,<br><br>
मौसम ही<br>यह नहीं दृष्टि भर<br>
पाहन तक मदिराए हैं।
</poem>
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