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अगरबत्ती / इला प्रसाद

4 bytes added, 14:47, 9 नवम्बर 2009
|रचनाकार=इला प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}<poem>अंदर की आँच  
अधिक तो नहीं थी
 
बस एक जलती हुई अगरबत्ती थी
 
जो धीमे-धीमें सुलगती रही
 
अलक्षित
 
और एक दुनिया अंदर ही अंदर
 
जल कर राख हो गयी
 
अपने ही अंदर की आग से
 
अगरबत्ती की राख से
 
फिर से उठी मैं
 
अगरबत्ती बन कर
 
और फिर से तपने लगी
 
</poem>
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