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क्रय / महादेवी वर्मा

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:::चुका पायेगा कैसे बोल!
:::थकते पर पलकें न लगाते,
क्यों मेरा पहरा देते वे तारक आँखें खोल?
:::पाषाणों की शय्या पाता,:::उन पर गीले गान बिछाता,:::नित गाता, गाता ही जाता,
जो निर्झर उसको देगा क्या मेरा जीवन लोल?
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