क्या नहीं घन सी तिमिर सी वेदना?
क्षुद्र तारों से पृथक संसार में,
क्या कहीं अस्तित्व है झंकार का?
यह क्षितिज को चूमनेवाला जलधि,
क्या नहीं नादान लहरों से बना?
क्या नहीं लघु वारि-बूँदों में छिपी,
वारिदों की गहनता गम्भीरता?
विश्व में वह कौन सीमाहीन है?
हो न जिसका खोज सीमा से मिला!
क्यों रहोगे क्षुद्र प्राणों में नहीं,
क्या तुम्हीं सर्वेश एक महान हो?
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