|रचनाकार = आलोक धन्वा
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इछामती और मेघना
महानंदा
रावी और झेलम
गंगा गोदावरी
नर्मदा और घाघरा
नाम लेते हुए भी तकलीफ़ होती है
उनसे उतनी ही मुलाक़ात होती है
जितनी वे रास्ते में आ जाती हैं
और उस समय भी दिमाग कितना कम
पास जा पाता है
दिमाग तो भरा रहता है
लुटेरों के बाज़ार के शोर से।
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