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शरद की रातें / आलोक धन्वा

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|रचनाकार = आलोक धन्वा
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शरद की रातें
 
इतनी हल्की और खुली
 
जैसे पूरी की पूरी शामें हों सुबह तक
 
जैसे इन शामों की रातें होंगी
 
किसी और मौसम में
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