|संग्रह= अबूतर कबूतर / उदय प्रकाश
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
शाहनवाज़ खाँ
तुम अपनी अंटी से तूतनखामेन की
अशर्फ़ी निकालना ।
उधर हाट के सबसे आख़िरी छोर पर
नीम के नीचे
टाट पर
कई साल से अपनी झुर्रियों समेत बैठी
करीमन किरानची होगी ।
तुम उससे अशर्फ़ी के बदले
लहसुन माँगना ।
यह शर्त रही
कि वह नहीं देगी ।
</poem>