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08:19, 10 दिसम्बर 2006 कलरव घर में नहीं रहा
सन्नाटा पसरा है
सुबह-सुबह ही सूरज का मुंह
उतरा-उतरा है।
पानी ठहरा जहां, वहां पर
पत्थर बहता है
अपराधी ने देश बचाया
हाकिम कहता है
हाकिम का भी
अपराधी से रिश्ता गहरा है।
हंसता हूं जब तुम कबीर की
साखी देते हो
पैर काटकर लोगों को
वैसाखी देते हो
दहशत में है
आम आदमी, तुमसे खतरा है।
ठगा गया है आम आदमी
आया धोखे में
घर में भूत जमाये डेरा
देव झरोखे में
गूंगों की
पंचायत करने वाला बहरा है।
जैसा तुम बोओगे भाई!
वैसा काटोगे
भैंसे की मन्नत माने हो
भैंसा काटोगे
तेरी बारी है
चोरी की, तेरा पहरा है।