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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>'''बरसाती नद…
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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>'''बरसाती नदी हो गये गीत मेरे
कहीं खो गये अर्थ हैं मीत मेरे..'''

बहुत सोचता हूँ कि लय ही में लिक्खूँ
तय हैं जो मीटर तो तय ही में लिक्खूँ
हरेक शब्द नापूँ , हरेक भाव तोलूँ
कठिन लिक्खूँ भाषा, मैं विद्वान हो लूँ

मगर माफ करना यही लिख सकूंगा
बहुत बेसुरे से हैं, संगीत मेरे
'''बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..'''

माँ शारदा से, लड़ा भी बहुत मैं
ये क्या लिख रहा हूँ अड़ा भी बहुत मैं
मुझे भी तो जुल्फ़ों में बादल दिखा है
मेरे भी तो खाबों में संदल दिखा है

तो ये दर्द क्यों, क्यों मुझे आह लिखना
तेरे आँख के अश्क क्यों रीत मेरे
'''बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..'''

मेरा शब्द बन कर मचलती हैं चीखें
तेरी ही घुटन है तू देखे न दीखें
कलम एक चिनगी, कलम जिम्मेदारी
कलम शंख है, फूँकता मैं पुजारी

मेरे शब्द गर तुझमें उम्मीद भर दें
तू फिर उठ खड़ा हो तो है जीत मेरे
'''बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..'''

मैं लिक्खूँ मजूरा, मैं हल्ला ही बोलूँ
न सहमत हुआ तो मैं झल्ला ही बोलूँ
मैं अपशब्द लिक्खूँ, मेरे शब्द पत्थर
मेरे शब्द में नीम, आँगन का गोबर

मेरे शब्द रौशन, अगर है अंधेरा
निराशा में ये शब्द उम्मीद मेरे
'''बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..'''

कहीं एक रोड़ा, कोई ईंट जोड़ा
सच है री कविता कहीं का न छोड़ा
मेरी लेखनी में नहीं बात कोई
मगर साफ कहता हूँ है साफगोई

कहीं से शुरू फिर कहीं बेतुके
बहुत सिरचढे शब्द मनमीत मेरे
'''बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..'''

15.04.2007</poem>
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