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03:56, 13 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
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अहो हरि ऐसी तौ नहिं कीजै।
अपनी दिसि बिलोकि करुनानिधि हमरे दोस न लीजै॥
तुव माया मोहित कहँ जानै कैसे मति रस भीजै।
’हरीचंद’ पहिलें अपनो करि फिर काहे तजि दीजै॥
</poem>