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सच कहता हूँ मैं / कैलाश गौतम

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लेखक: [[कैलाश गौतम]]{{KKGlobal}}[[Category:{{KKRachna|रचनाकार=कैलाश गौतम]][[Category:कविताएँ]]|संग्रह= }}
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तुमने छुआ, जगा मन मेरा
सच कहता हूं हूँ मैं
मेरा तो अब हुआ सबेरा
सच कहता हूं हूँ मैं
खूब मिला तू रैन-बसेरा
सच कहता हूं हूँ मैं।
मन के दर्पण से
मैं हूं हूँ तेरा सांप संपेरा
सच कहता हूं हूँ मैं
हुई रोशनी, छंटा अंधेरा
सच कहता हूं हूँ मैं।