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{{KKRachna
|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
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अहो प्रभु अपनी ओर निहारौ।
करिकै सुरति अजामिल गज की, हमरे करम बिसारौ।
’हरीचंद’ डूबत भव-सागर, गहि कर धाइ उबारौ॥
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