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05:04, 15 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रहीम
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<poem>
पट चाहे तन, पेट चाहत छदन, मन
चाहत है धन, जेती संपदा सराहिबी।
तेरोई कहाय कै ’रहीम’ कहै दीनबंधु
आपनी बिपत्ति जाय काके द्वार काहिबी॥
पेट भर खायो चाहे, उद्यम बनायो चाहे,
कुटुंब जियायो चाहे काढ़ि गुन लाहिबी।
जीविका हमारी जो पै औरन के कर डारो,
ब्रज के बिहारी तौ तिहारी कहाँ साहिबी॥
</poem>