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12:11, 10 दिसम्बर 2006 लेखक: [[यश मालवीय]]
[[Category:यश मालवीय]]
[[Category:कविताएँ]]
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देह हुई दीपावली, जगमग-जगमग रात <br>
करे अमावस किस तरह, अब कोई भी घात॥ <br><br>
चाहे कुछ हो अब कहीं, होगी नहीं अंधेर <br>
दिया पहन कर शाम से, हंसने लगी मुंडेर॥ <br><br>
आंखों में सजने लगा, पूजा का सन्देश <br>
मंद-मंद मुस्का उठे, लक्ष्मी और गणेश॥ <br><br>
मन में आतिशबाजियां, तन पर उसकी जोत <br>
आंखों में तिरने लगा, सांसों का जलपोत॥ <br><br>
तिमिर छंद को तोड़कर, जुड़ा तीज त्यौहार <br>
कहीं फुलझड़ी हंस पड़ी, छूटा कहीं अनार॥ <br><br>
डबडब करती आंख में, झिलमिल करते दीप <br>
ऐसे भी आया करे, कोई कभी समीप॥ <br><br>