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05:31, 15 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>क्वक क्वक क्वक
क्वक क्वक क्वक
दादी बाहर निकलीं
दादी को अनकुस लगा
डाँट कर उन्होंने कहा
यह क्या करता है तू टेढई
टेढ्ई नें दादी से कहा,
क्वक क्या होता है
चिडिया क्यों दोहराती है
जो वह कहती है
वही तो मैं कहता हूँ
कौन सी है चिडिया यह
उखमज है तू टेढई
तिरती तलैय्या में
चारा ढूंढ रही है अपना
हम लोग बनमुर्गी आपस में कहते हैं।
23.11.2002</poem>