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सुभ है आज घरी / मीराबाई

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[[Category:मीराबाई]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:पद]]

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तेरो कोई नहिं रोकणहार, मगन होइ मीरा चली।।<br>
लाज सरम कुल की मरजादा, सिरसै दूर करी।<br>
मान-अपमान दोऊ धर पटके, निकसी ग्यान गली।।<br>
ऊँची अटरिया लाल किंवड़िया, निरगुण-सेज बिछी।<br>
पंचरंगी झालर सुभ सोहै, फूलन फूल कली।<br>
बाजूबंद कडूला सोहै, सिंदूर मांग भरी।<br>
सुमिरण थाल हाथ में लीन्हों, सौभा अधिक खरी।।<br>
सेज सुखमणा मीरा सौहै, सुभ है आज घरी।<br>
तुम जाओ राणा घर अपणे, मेरी थांरी नांहि सरी।।<br><br>