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हमदर्द / फ़राज़

114 bytes added, 14:44, 15 नवम्बर 2009
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<poem>
 
ऐ दिल उन आँखों पर न जा
जिनमें वफ़ूरे-रंज<ref>दु:खों की बहुतायत</ref>
ये चन्द लम्हों की चमक
जो तुझको पागल कर गई
इन जुगनुओं के नूर<ref>प्रकाश</ref>से
चमकी है कब वो ज़िन्दगी
जिसके मुक़द्दर<ref>भाग्य</ref>में रहीसुबहे-तलब <ref>माँगने की प्रभात से</ref>से तीरगी<ref>अँधेरा</ref>
किस सोच में गुमसुम है तू
ऐ बेख़बर! नादाँ<ref>मूर्ख</ref>न बन
तेरी फ़सुर्दा रूह<ref>उदास आत्मा</ref>को
चाहत के काँटों की तलब
और उसके दामन में फ़क़त<ref>केवल</ref>
हमदर्दियों के फूल हैं
 
</poem>
 
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